देह छूटा...शब्द रह गया बाकी...साहित्य की साधना से सामाजिक विषमताओं पर किया था कड़ा प्रहार... टिकेन्द्र टिकरिहा की जयंती पर डहरचला परिवार का पुण्य स्मरण

फ़रवरी 1, 2025 - 15:20
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देह छूटा...शब्द रह गया बाकी...साहित्य की साधना से सामाजिक विषमताओं पर किया था कड़ा प्रहार... टिकेन्द्र टिकरिहा की जयंती पर डहरचला परिवार का पुण्य स्मरण

रायपुर। छत्तीसगढ़ के संत साहित्यकार टिकेन्द्र टिकरिहा की जयंती पर आज 1 फरवरी को डहरचला परिवार ने पुण्य स्मरण किया। डहरचला परिवार के प्रेरणास्त्रोत श्री टिकरिहा जी के जयंती के अवसर पर उन्हे स्मरण करते हुए उन्हे श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर डहचला के प्रधान संपादक मुकेश टिकरिहा ने कहा कि साहित्यकार कभी मरते नहीं हैं, वे अपने साहित्य के माध्यम से पाठकों के दिलों में हमेशा जिंदा रहते हैं, ठीक इसी प्रकार टिकेन्द्र टिकरिहा जी अपने साहित्य के माध्यम से अजर-अमर हैं। उन्होंने बताया कि आगामी 1 फरवरी 2026 को टिकरिहा जी की जन्मशताब्दी है, इस अवसर पर वर्ष भर जन्मशताब्दी समारोह के अंतर्गत विविध कार्यक्रमों के आयोजन का प्रयास किया जाएगा। कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने जल्द ही एक समिति गठित की जायेगी। 
जीवन परिचय

1 फरवरी 1926 को ग्राम सिलघट बेरला दुर्ग छत्तीसगढ़ में जन्म लेने वाले संत साहित्यकार टिकेन्द्र टिकरिहा स्नातक के दौरान वर्धा आश्रम में रहे। जैसा कि आप जानते हैं वर्धा आश्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का आना जाना उस दौर में हुआ करता था। इसलिए वे गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। इसका टिकेन्द्र टिकरिहा के व्यक्तित्व साहित्य और जीवन में गहन प्रभाव पड़ा। 
पचास के दशक में लौटे गांव, हुआ था जोरदार स्वागत
टिकेन्द्र टिकरिहा वर्धा आश्रम में अध्ययन पूर्ण करने के बाद पचास के दशक में गांव लौटे। गाजे-बाजे के साथ क्षेत्रवासियों ने इसलिए स्वागत किया, क्योंकि वह गांव से स्नातक होने वाले पहले व्यक्ति थे। खाद्य अधिकारी नियुक्त हुए। सिद्धांत पालन में कठिनाई का अनुभव किया, तो इस शासकीय सेवा से भी त्यागपत्र दे दिया। कक्षा नौंवी से साहित्य साधना प्रारंभ हुई। सुदीर्घ वर्षों तक छत्तीसगढ़ी में सैकड़ों नाटक लिखे। छत्तीसगढ़ के समाज जीवन का ऐसा कोई पक्ष नहीं, जहां उनकी लेखनी न पहुंची हो। उनके नाटकों में सामाजिक विषमताओं पर कड़ा प्रहार है, तो छत्तीसगढ़ के खेतिहर मजदूरों, किसानों के प्रति संवेदना एवं उनकी कर्मठता का उज्ज्वल चित्रण है। 
सहज-सरल छत्तीसगढ़ी ग्राम्य जीवन की सुंदर छटा भी उनके नाटकों में प्रतिबिंबित हुई है। अविरत साहित्य साधना के प्रति उनका अनुराग विलक्षण था। सम्मान समारोह, पुरस्कार-एवं-पद के प्रति उनकी सर्वाधिक अनासक्ति थी। उन्होंने कई प्रस्तावों को विनम्रता से इसलिए नकार दिया क्योंकि साहित्य साधना में बाधा पहुंचती थी। गीता में जिस निस्पृहता का उल्लेख है, उसकी साकार प्रतिमूर्ति  हैं टिकेन्द्र टिकरिहा। आज छत्तीसगढ़ी साहित्य आकाश के इसी उज्जवल नक्षत्र की जयंती है।