किस्सा बहराम चोट्टे का 65 वर्ष बाद विमोचित, आलोचकों की राय में स्वतंत्र भारत का प्रथम व्यंग्य उपन्यास

*छत्तीसगढ़ के प्रथम व्यंग्यकार विश्वेंद्र ठाकुर* रायपुर के विमतारा सभागार में एक ऐतिहासिक कार्यक्रम स्व. विश्वेंद्र ठाकुर के व्यंग्य उपन्यास "किस्सा बहराम चोट्टे का" 65 वर्ष बाद पुनर्मुद्रण पश्चात विमोचन हुआ । छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से आए लगभग 300 से अधिक साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों ने इस उपन्यास के विमोचन समारोह में भागीदारी निभाई । इस उपन्यास के साथ साथ "किस्सा बहराम चोट्टे का : स्वातंत्र्योत्तर भारत के हिंदी साहित्य में प्रासंगिकता" विषय पर केंद्रित आलेखों के संग्रह का भी विमोचन किया गया । जिसे मूर्धन्य साहित्यकारों, आलोचकों एवं पत्रकारों ने लिखा है । उपस्थित साहित्यकारों ने इसे छत्तीसगढ़ ही नहीं देश का प्रथम व्यंग्य उपन्यास कहा और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे 65 वर्ष बाद भी सामयिक माना । इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार श्री बलदेव भारती (भाटापारा), श्री रवि श्रीवास्तव ( भिलाई), श्री रामेश्वर वैष्णव, श्री गिरीश पंकज, श्री विनोद साव (भिलाई), डॉ महेंद्र कुमार ठाकुर, महासमुंद से श्री अशोक शर्मा, श्री ईश्वर शर्मा, श्री करीम घोंघी, बंधु राजशेखर खरे, भाटापारा से ऋषि साव, श्री राजकुमार शर्मा, राजेश गुप्ता, रायपुर से श्री रामेश्वर शर्मा, श्री शशांक शर्मा (अध्यक्ष छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी), श्री निकष परमार, श्री सुदीप ठाकुर, डॉ सुशील त्रिवेदी, डॉ सुधीर शर्मा, डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र, श्री शशांक खरे, श्री अनिरुद्ध दुबे, श्रीमती सुमन शर्मा बाजपेई, भारती यादव, शकुंतला तरार , सीमा निगम, जया सिंह, सुजाता शुक्ला, संदीप पांडे ( बलौदा बाजार), श्री देवधर महंत (बिलासपुर), संजय पांडे (बिलासपुर ), सहित अनेक साहित्यकार, उपस्थित रहे । स्व. विश्वेंद्र ठाकुर द्वारा लिखित किस्सा बहराम चोट्टे का छत्तीसगढ़ का प्रथम व्यंग्य उपन्यास है जिसका विमोचन विमतारा सभागार में समारोह पूर्वक सम्पन्न हुआ ।इसका पहले धारावाहिक रूप में प्रकाशन 1958-59 में हुआ और बाद में श्रमजीवी प्रकाशन रायपुर द्वारा 1962 में मुद्रित कराया गया । "किस्सा बहराम चोट्टे का" उपन्यास की मूल प्रति हाल ही में मिलने के बाद इसके द्वितीय संस्करण का विश्व क्रांति प्रकाशन द्वारा किया गया है। पुनः मुद्रित व्यंग्य उपन्यास का विमोचन समारोह साधना फाउंडेशन एवं आचार्य सरयूकांत झा स्मृति संस्थान रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में विमतारा सभागृह शांति नगर में आयोजित किया गया । इस अवसर पर छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज, रामेश्वर वैष्णव, डॉ सुशील त्रिवेदी, विनोद साव, रवि श्रीवास्तव, डॉ महेंद्र ठाकुर, रामेश्वर शर्मा उपस्थित हुए और अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की । *गिरीश पंकज* वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि सबसे पहले यही तथ्य रेखांकित करना बेहद महत्वपूर्ण होगा कि आजादी के बाद के हिंदी साहित्य का पहला व्यंग्य उपन्यास 'किस्सा बहराम चोट्टे का' था। कितने लोगों को यह पता है कि सन 1962 में एक व्यंग्य उपन्यास 'किस्सा बहराम चोट्टे का' प्रकाशित हुआ । हिंदी के चर्चित किए गए व्यंग्य उपन्यास 'राग दरबारी' का प्रकाशन तो सन 1968 में हुआ था। और उसके 6 साल पहले एक व्यंग्य उपन्यास रायपुर में बैठ कर लिखा जा चुका था। उन्होंने विश्वास जताया कि सड़सठ साल बाद ही सही, आजादी के एक दशक बाद लिखे गए इस पहले व्यंग्य उपन्यास पर समकालीन हिंदी आलोचना के दिग्गज गंभीरतापूर्वक ध्यान देंगे। कम-से-कम छत्तीसगढ़ में तो इस उपन्यास पर कुछ शोधकार्य भी होंगे। *रामेश्वर वैष्णव* रामेश्वर वैष्णव ने कहा कि छत्तीसगढ़ के साहित्य की राष्ट्रीय स्तर पर हमेशा उपेक्षा हुई है । जबकि छायावाद का उद्गम रायगढ़ के मुकुटधर पांडे ने किया । प्रथम कहानी टोकरी भर मिट्टी माधव राव सप्रे द्वारा लिखी गई । इसी तरह निष्पक्ष मूल्यांकन हो तो विश्वेन्द्र ठाकुर जी न केवल छत्तीसगढ़ के अपितु भारतवर्ष के प्रथम व्यंग्यकार सिद्ध हों। *विनोद साव* भिलाई से पधारे व्यंग्यकार विनोद साव ने कहा कि विश्वेन्द्र जी का कवि-हृदय, उनका समुचित ज्ञान, सामयिकता की पकड़, जिन्दगी की जिन्दादिली और लेखन का विनोदीपन इन तमाम तकनीकों से उपन्यास के नैरेटर (सूत्रधार) 'बहराम चोट्टे' के कार्य-कलापों को किस्से-कथानक के रूप में यहां विस्तारित कर दिखाया है । उन्होंने कहा कि सत्तर पृष्ठों के रचना संसार में इसके सूत्रधार के चरित्र और विकास में ऐसा बेतुका, हास्यास्पद, असंगत या मूर्खतापूर्ण कार्यों की निरंतरता है कि इसे हम' अब्सर्ड' (Absurd) भी कह सकते हैं । अब्सर्ड ऐसी चीज को दर्शाता है जो सामान्य तर्क, सामान्य ज्ञान या विवेक के विपरीत हो और इसका सूत्रधार बहराम चोट्टा इस तरह की विवेकहीनता से भरा मास्टर-पीस है। इसके पूर्व महासमुंद के अशोक शर्मा ने स्वर्गीय लतीफ घोंघी के घर से उपन्यास की मूल प्रति करीम घोंघी द्वारा उपलब्ध कराने की घटना को विस्तार भावपूर्ण ढंग से बताया । पत्रकार निकष परमार, सुदीप ठाकुर, भिलाई से डॉ सुधीर शर्मा ने अपना वक्तव्य रखा । *नए स्वर द्वारा कविता पाठ* इस अवसर पर स्व विश्वेंद्र ठाकुर की रचनाओं की संगीत मय प्रस्तुति दीपक व्यास और उनके साथी ने दी । कार्यक्रम में विश्वेंद्र ठाकुर की जीवनी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई । साधना फाउंडेशन ने युवा रचनाकारों के लिए ओपन माइक "नए स्वर" का आयोजन भी किया । जिसमें चुने रचनाकार अभिषेक वैष्णव को विश्व क्रांति सम्मान से नवाजा गया । कार्यक्रम का संचालन साधना फाउंडेशन की सचिव शुभ्रा ठाकुर , डॉ शुभा बनर्जी और सीमा निगम ने किया ।

अक्टूबर 26, 2025 - 19:53
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