कौन थे सलीम अंसारी? : छत्तीसगढ़ी सिनेमा के हास्य नायक की अनकही कहानी

सलीम अंसारी (जिन्हें प्यार से 'चाचा जी' भी कहा जाता था) छत्तीसगढ़ी सिनेमा और थिएटर के एक प्रमुख स्तंभ थे। वे अपनी सहज अभिनय शैली, हास्यपूर्ण संवादों और विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति को फिल्मों के माध्यम से हर घर तक पहुंचाया। दुर्भाग्यवश, उनका निधन 30 अक्टूबर 2025 को रायपुर में बीमारी के कारण हो गया, जिसकी खबर 31 अक्टूबर को फैली। नीचे उनकी जीवनी का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। जन्म और प्रारंभिक जीवन जन्म तिथि और स्थान: 23 मार्च 1960 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में। उम्र: निधन के समय 68 वर्ष। प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक रूप से कम उपलब्ध है, लेकिन वे रायपुर के स्थानीय परिवेश से निकले एक साधारण परिवार से थे। उन्होंने अपनी कला यात्रा की शुरुआत थिएटर से की, जहां उन्होंने कई वर्षों तक काम किया और स्थानीय दर्शकों के बीच लोकप्रियता हासिल की। करियर सलीम अंसारी का करियर थिएटर से शुरू होकर एल्बम्स और फिर सिनेमा तक फैला। उन्होंने छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी फिल्मों में 150 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें वे मुख्य रूप से कॉमेडी भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी अभिनय शैली इतनी स्वाभाविक थी कि दर्शक उन्हें 'छत्तीसगढ़ी सिनेमा का मुस्कुराता चेहरा' कहते थे। सलीम अंसारी जी की कला यात्रा किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। उनका सफ़र सीधे कैमरा और लाइट्स से शुरू नहीं हुआ, बल्कि इसकी नींव छत्तीसगढ़ की पारंपरिक लोक-कला और रंगमंच की मज़बूत ज़मीन पर रखी गई थी। शुरुआती दिनों में वे गाँव-गाँव में होने वाले "नाचा-गम्मत" का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। मंच पर अभिनय करना, संवाद बोलना और दर्शकों की सीधी प्रतिक्रिया को महसूस करना, यह सब उनके खून में बस चुका था। रंगमंच के इसी अनुभव ने उनके अंदर के कलाकार को तराशा, उसे अनुशासित किया और उन्हें वह क्षमता दी, जिससे वे किसी भी किरदार को जीवंत कर सकते थे। उनकी संवाद अदायगी में जो ठहराव, जो वज़न और जो स्पष्टता थी, वह इसी मंचीय अनुभव की देन थी। उन्होंने सीखा कि सिर्फ़ शब्द बोलना ही अभिनय नहीं है, बल्कि शब्दों के पीछे की भावनाओं को दर्शकों के दिलों तक पहुँचाना असली कला है। छॉलीवुड का उदय और सलीम अंसारी का आगमन जब छत्तीसगढ़ी सिनेमा अपनी शुरुआती साँसें ले रहा था, तब उसे कुछ ऐसे कलाकारों की सख़्त ज़रूरत थी जो अभिनय की बारीकियों को समझते हों और जिनमें अपनी माटी की महक हो। सलीम अंसारी जी इस ज़रूरत पर पूरी तरह खरे उतरे। जब उन्हें फ़िल्मों का ऑफ़र मिला, तो वे अपने साथ रंगमंच का एक विशाल अनुभव लेकर आए। उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत उनकी बहुमुखी प्रतिभा थी। वे किसी एक छवि में बंधकर नहीं रहे। जब वे परदे पर एक क्रूर और निर्दयी खलनायक के रूप में आते, तो उनकी आँखों की नफ़रत और उनकी कड़क आवाज़ देखकर दर्शक सच में उनसे घृणा करने लगते थे। उनके द्वारा निभाए गए खलनायक के किरदार इतने सशक्त होते थे कि फ़िल्म के नायक को भी उनसे टक्कर लेने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना पड़ता था। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह था कि यही सलीम अंसारी जब एक हास्य कलाकार की भूमिका में आते, तो सिनेमा हॉल ठहाकों से गूंज उठता था। उनकी कॉमिक टाइमिंग, उनके चेहरे के भाव और उनका ठेठ छत्तीसगढ़ी अंदाज़ दर्शकों को हँसते-हँसते लोटपोट कर देता था। एक ही कलाकार के अंदर अभिनय के इन दो विपरीत ध्रुवों का ऐसा अद्भुत संगम बहुत कम देखने को मिलता है। खलनायक से लेकर चरित्र अभिनेता और हास्य कलाकार तक, उन्होंने हर भूमिका को पूरी ईमानदारी और लगन से निभाया। वो फ़िल्में जो हमेशा याद रहेंगी सलीम अंसारी जी ने अपने लंबे फ़िल्मी करियर में सैकड़ों फ़िल्मों में काम किया और अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी कुछ यादगार फ़िल्मों में "मोर छंइहा भुइयां", "झन भूलो माँ बाप ला", "माया", "लैला टिप-टॉप छैला अंगूठा-छाप", "टुरी नंबर 1", "भोउंरा" और "मयारू भौजी" जैसी अनगिनत हिट फ़िल्में शामिल हैं। फ़िल्म "मोर छंइहा भुइयां" ने जहाँ छत्तीसगढ़ी सिनेमा को एक नई दिशा दी, वहीं सलीम अंसारी जी के अभिनय ने इस फ़िल्म को एक नई ऊंचाई पर पहुँचाया। उनका हर किरदार दर्शकों के मन में बस जाता था। वे सिर्फ़ अभिनय नहीं करते थे, बल्कि किरदार को जीते थे। यही वजह है कि आज भी जब उनकी फ़िल्में टीवी पर आती हैं, तो लोग उन्हें उसी चाव से देखते हैं। वे उन चुनिंदा कलाकारों में से थे, जिनका नाम ही फ़िल्म की सफलता की गारंटी माना जाता था। थिएटर से शुरुआत: कई वर्षों तक थिएटर में सक्रिय रहे, जहां उन्होंने अपनी अभिनय कला को निखारा। एल्बम्स: थिएटर के बाद संगीत एल्बम्स में काम किया (जिनकी संख्या गिनना मुश्किल है)। फिल्में: 1990 के दशक से छत्तीसगढ़ी सिनेमा (छॉलीवुड) में प्रवेश। उनकी पहली प्रमुख फिल्मों में से एक थी झन भुलव मां बाप ला (निर्देशक: सतीश जैन), जिसके बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ी। उन्होंने सैकड़ों फिल्मों में सहायक और मुख्य कॉमेडी भूमिकाएं निभाईं, जो दर्शकों को हंसाने और छत्तीसगढ़ी संस्कृति को जीवंत करने के लिए याद की जाती हैं। उल्लेखनीय योगदान: वे छत्तीसगढ़ी सिनेमा के 'कॉमेडी स्टार' थे। उनके संवाद और हास्य ने हर उम्र के दर्शकों को आकर्षित किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा: "मैं थिएटर से आया हूँ। बहुत साल थिएटर किया, फिर एल्बम में काम किया। एल्बम गिने नहीं जा सकते। फिर फिल्मों में आया। लोगों ने मेरे काम को पसंद किया, यही सबसे बड़ा पुरस्कार है।" पुरस्कार और मान्यता विशिष्ट पुरस्कारों का उल्लेख कम मिलता है, लेकिन दर्शकों की प्रशंसा को वे अपना सबसे बड़ा सम्मान मानते थे। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में उनके योगदान को 'अपूरणीय क्षति' कहा जा रहा है। व्यक्तिगत जीवन सलीम अंसारी एक विनम्र और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे कला जगत में सभी के प्रिय थे और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के प्रचारक बने रहे। उनके परिवार के बारे मे

अक्टूबर 31, 2025 - 22:18
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