------- भौतिक - लिप्सा ------

सितम्बर 20, 2024 - 13:47
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------- भौतिक - लिप्सा ------

विषयों की राहों पर फिसलन

मन पथिक उसी पर चलता है ।

भौतिक सुख के संसाधन में ,

जीवन ही सारा ढलता है ।

कल की आशाओं में निशदिन ,

ताने बाने बुन जाते हैं ।

सपनों की आँख मिचौनी में ,

नित नये द्वार खुल जाते हैं ।

 धन - दौलत , गौरव पाने को ,

चंचल मन खुद में उलझ रहा ,

ईश्वर - सत्ता अपनाने को ,

 अधिकार स्वयं का समझ रहा ।

मेधा का प्रभुता के बादल ,

पथ पर अंधियारा लाते हैं ।

जीवन में प्रेयश को उतार ,

पग - पग विचलित हो जाते हैं ।

आशक्त मनः स्थिति ही तो ,

बेचैन जीव को करती है ।

इच्छाओं की बलिवेदी पर ,

मानवता की बली चढ़ती है ।

 ✍️ लक्ष्मीकांत वैष्णव अबोध