मानवता को शर्मसार करते राजधानी के आउटर अस्पताल?, कुकुरमुत्तों जैसे किराए की कमरों में संचालित अस्पतालों पर तो जरा भी भरोसा न करें ये सिर्फ आपको लूटने के लिए खोले गए हैं?

गरीबों की जिंदगी इतनी सस्ती क्यों हो जाती है उन पेशेवरों के लिए जिन्होंने डॉक्टर बनने बखत ये कसम खाई थी की उनके लिए पहला कर्तव्य मरीज की जान बचाना है? अभी राजधानी रायपुर या किसी भी बड़े शहरों के आउटर में संचालित अस्पतालों का हाल अचरज करने वाला हो सकता है, इन तथाकथित सुपरमल्टी स्पेश्यालिटी अस्पतालों का हाल आप देखेंगे एक ढंग की पढ़ी लिखी जानकर नर्स तक नही होते विशेषज्ञ डॉक्टर तो दूर की बात है! कल मेरे साथ ऐसा ही एक वाकया हुआ, एक परिचित भाजपा नेता का कॉल आया, उनके आवाज में दर्द था, उस ओर से चिल्लम चिल्ली की आवाजें आ रही थी, बताया की उसका छोटा भाई दोपहर हादसे का शिकार हो गया और सरकारी एंबुलेंश ने एक निजी अस्पताल में मरीज को छोड़ दिया, मजे की बात उस अस्पताल में कोई डॉक्टर ही नही था, मरीज गंभीर हालत में था फिर भी हॉस्पिटल टीम ने यह जानते हुए की उनके पास कोई विशेषज्ञ नही मरीज को ICU में डाल दिया, परिजन को इलाज जारी होने की सूचना दे दी गई पर उनके यहां तो कोई जिम्मेदार डॉक्टर था नही! ऐसे मौकों पर परिजन बहुत परेशान होते हैं बस हर हाल में सही इलाज और मरीज की जान बच जाए यही प्रार्थना करते हैं! पीड़ित परिजन में से किसी ने उस हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर को संपर्क किया जो तब तक वहां पहुंचा भी नही था तो उसने ढाढस बंधाते हुए कह दिया, चिंता न करें इलाज जारी है, मरीज के सर पे गंभीर चोटें थी तड़पते हालत में अस्पताल लाया गया था, ऐसे में परिजनों की चिंता जायज थी। दोपहर से शाम हो चली अस्पताल से कोई जिम्मेदार जवाब नही, भाजपा नेता अस्पताल आया ICU में जाकर देखता है की कोई व्यक्ति जो डॉक्टर नही था बिना डॉक्टर की उपस्थिति मरीज के नाक में पाइप डालकर खून बाहर खींच रहा था, परिजनों को शंका हुई, पूछताछ की, पता चला यहां अभी भी कोई विशेषज्ञ नही! संचालक डॉक्टर को कॉल लगाया तो उसने रटा रटाया जवाब दिया, मरीज को रायपुर रेफर कर रहा हूं, यानी अभी तक उक्त गंभीर मरीज को इलाज के नाम पर सिर्फ ICU का बेड ही मिला था और हालत बत्तर होती जा रही थी, भाजपा नेता लापरवाह हॉस्पिटल संचालक डॉक्टर पर बरस पड़ा, तू तू मैं मैं हुई, 10 हजार रूपए भी जमा करा लिए गए, बिना इलाज, जबरदस्ती टेस्ट कर दिए गए पर अब तक मरीज को कोई राहत नहीं, हालत बिगड़ता देख परिजनों ने हंगामा किया और आखिकार भयंकर गंभीर हालत में मरीज को रायपुर रेफर कर दिया गया! आप सोचिए इन अस्पतालों में ढंग के आपातकालीन चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं, नौसिखिए स्टाफ मरीज से ज्यादा इंस्टाग्राम और wtsp चैट में बिजी हैं, उन्हें मरीज के परिजनों से बात करने तक की तमीज नही, किसी की जान जा रही और उन्हें एक्सक्यूज देने की भी फुर्सत नही, कोई मरे तो मरे ये अपने डॉक्टर को डिस्टर्ब नहीं करेंगे? अंततः मरीज को रायपुर भेज कर सही इलाज जारी हुई। मानवता कहां मर गई है? आम जनता डॉक्टरों को भगवान का दर्जा देते हैं क्यों सिर्फ इसलिए की वे अपने फायदे के लिए किसी मरीज को बिना इलाज अस्पताल में भर्ती कर रखे रहें और मर जाने पर बिना कोशिश के हाथ उठा लें? आपातकालीन स्थिति में भी मेडिकल दलालों की मानवता नही जागती क्यों, उन्हें पता है कौन से हॉस्पिटल में कैसा डॉक्टर है पर भी वे कमीशन के चंद रुपयों के लिए किसी की जिंदगी से कैसे खेल लेते हैं? इन नाम भर के मल्टी स्पेश्यालिटी अस्पतालों की सच्चाई स्वास्थ्य विभाग को जांचनी चाहिए, क्या खेल चल रहा है इन मनुखमार अस्पतालों में जहां न ढंग के डॉक्टर न कोई सही इलाज, कुछ घंटे ICU में डाल कर परिजनों से झूठे इलाज के नाम पर हजारों वसूल आखिर वे रेफर ही कर देते हैं? ऐसे में मैं तमाम साथियों से अपील करता हूं ऐसे अस्पतालों में मरीज न भेजें, किसी पीड़ित को सही सलाह और उचित जगह भेजें जहां उनकी जान बचाई जा सके! और शहरों से दूर खरोरा कस्बाई जैसे इलाकों में कुकुरमुत्तों जैसे किराए की कमरों में संचालित अस्पतालों पर तो जरा भी भरोसा न करें ये सिर्फ आपको लूटने के लिए खोले गए हैं? एक डॉक्टर जगह जगह पान ठेलों की तर्ज पर अस्पताल खोल कर खुद रायपुर में बड़े अस्पतालों का नौकर है? और दूसरी ओर मेडिकल दलालों की फौज गांव गांव घूम कर गरीबों को सही और अच्छी इलाज का धोखा बांट रहे हैं? मैं तमाम ग्रामीण डॉक्टर जो BMS या इस तरह की डिग्रियों के साथ समाज सेवा कर रहें हैं उन्हें भी अपील करना चाहता हूं, मरीज आपके आसपास के आपके पड़ोसी परिचित, रिश्तेदार ही होते हैं ऐसे में किसी आपातकालीन परिस्थितियों में संबंधित अस्पतालों की मोटी कमिशन का लालच न कर उचित और सही हाथों तक मरीजों को प्रेषित करें! चिकित्सा और होस्पिटिलिटी जिस तेजी से व्यवसायिक हुआ है ऐसे में अब तथाकथित अस्पतालों और डॉक्टरों को क्या संज्ञा दें, समझ नही आता! गजेंद्ररथ गर्व, प्रदेश अध्यक्ष, छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ

दिसम्बर 8, 2025 - 21:48
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मानवता को शर्मसार करते राजधानी के आउटर अस्पताल?, कुकुरमुत्तों जैसे किराए की कमरों में संचालित अस्पतालों पर तो जरा भी भरोसा न करें ये सिर्फ आपको लूटने के लिए खोले गए हैं?